मौन सफर में चलते-चलते
कितने लम्हे छूट गये
हुए पराए कितने अपने
कितने अपने छूट गए
मुक्त हृदय पर रहा सफर में अपनी सबसे रही बंदगी
नहीं अकेला रहा सफर में साथ चली हर बार जिंदगी।।
तेरे सच में मेरे सच में
जितनी छुपी कहानी है
शोर किया पर जग कब माना
मेरी छपी जुबानी है
समय अंक के गंगा जल में मन की सारी घुलीं गंदगी
नहीं अकेला रहा सफर में साथ चली हर बार जिंदगी।।
पीछे मुड़ कर देखा जब भी
राहों में इक रेख दिखी
समय पृष्ठ के हर पन्ने में
धुँधली सी इक लेख दिखी
त्याग समय के लेख अधूरे आगे बढ़ती रही जिंदगी
नहीं अकेला रहा सफर में साथ चली हर बार जिंदगी।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
22दिसंबर, 2022
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