मेरे मन की प्राण वायु।
जग कहता है इन गीतों में हमने भावों को रच डाला
सच तो ये है पंक्ति गीत की मेरे मन की प्राण वायु है।।
मन के नूतन आयामों की
आकाशों के पार परिधि है
मुग्ध मनोरम नंदनवन तक
इन नयनों की पुष्पित निधि है
मन के पार कहीं जाकर के
तनिक शून्य से भाव चुराकर
पृष्ठों पर उनको लिख डाला
सच तो ये है भाव पंक्ति के मेरे मन की प्राण वायु है।।
नहीं चाह जग से कुछ पाऊँ
नहीं चाहता मेरी जय हो
अपने मन की चाह यही है
पंक्ति-पंक्ति बस जीवन मय हो
जीवन के कुछ पुण्य पलों से
साँसों का अहसास चुराकर
हमने गीतों में रच डाला
सच तो ये है पंक्ति गीत के मेरे मन की प्राण वायु हैं।।
सुनता हूँ कितनों ने अपने
गीतों से सम्मोहन बाँधा
कितने मन के पार उतरकर
अंतस के भावों को साधा
भावों के उन मौन पलों से
हमने थोड़े मौन चुराकर
उनको बस गीतों में ढाला
सच तो ये है मौन पंक्तियाँ मेरे मन की प्राण वायु हैं।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
26नवंबर, 2022
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