क्यूँ इतना आसान नहीं।
क्यूँ इतना आसान नहीं
आवाजों के इस मेले में
चुप की क्यूँ पहचान नहीं
घाव हृदय के भीतर हो जब
ऊपर से कब दिखता है
विष पीकर हँसने वालों के
होते क्या अरमान नहीं।।
दुःख के अनुभव से गुजरा जो
वो सुख का मोल समझता
अनुभव की चक्की में पिस कर
अंतस का रूप निखरता
अनुभव के उस पुण्य पथिक की
राहें अब आसान नहीं
कम कह देना अधिक समझना
क्यूँ इतना आसान नहीं।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18नवंबर, 2022
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें