बहुत हुईं बातें मृदुवन की
जगती के संवेदन मन की
तुमने मन की बात कही है
मैंने सारी बात सुनी है
मैंने भी कुछ तुमसे बोला
तुमने बंद हृदय को खोला
जीवन पथ पर मन जब हारा
इक दूजे का बने सहारा
ऐसे ही तो पलना होगा
साथी पर अब चलना होगा।।
कैसे बाँधूँ तुमसे बंधन
मन पर बोलो किसका शासन
मन तो प्रतिपल चला अकेला
साथ भले दुनिया का मेला
मन ने मन की बात सुनी है
तब जाकर ये राह चुनी है
जगती में है कौन हमारा
वादों का ही एक सहारा
वादा फिर से करना होगा
साथी पर अब चलना होगा।।
तकदीरों का कैसा नर्तन
संसृति का ये कैसा शासन
सागर के लहरों की जाने
तटबंधों से कैसी अनबन
टकराते हैं दूर किनारे
इक दूजे को मगर पुकारें
लहरों पर मन का नौकायन
खोल द्वार, सारे वातायन
लहरों सा ही बहना होगा
साथी पर अब चलना होगा।।
साथी हम दूजे को मानें
ऊंच-नीच क्या है पहचानें
इक दूजे का मान करें हम
इक दूजे का ध्यान धरें हम
अपनी सीमाओं को जानें
संकेतों को हम पहचानें
निजता का सम्मान करें हम
आहों में गुणगान करें हम
पल का मूल्य समझना होगा
साथी पर अब चलना होगा।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
13अक्टूबर, 2022
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