माना तेज बहुत है धारा
पथिक वही जो थका न हारा
पग-पग जिसने पंथ बुहारा
आहों का ना लिया सहारा
जिसने जीवन क्या समझाया
आहों में भी जिसने गाया
उसके सपने हैं सुखदाई
जिसने मन की प्यास बुझाई
ऐसे ही पथ को अपनाओ
आशाओं के पुष्प खिलाओ।।
मरुथल जिसने पीछे छोड़ा
बिखरी सांसों को फिर जोड़ा
छोड़ा जिसने सभी निराशा
मन में भरकर नूतन आशा
जिसने सपनों को अपनाया
जिसने पलकों को सहलाया
जिसने राहें नई सुझाईं
जिसने की मन की सुनवाई
ऐसा जीवन तुम अपनाओ
आशाओं के पुष्प खिलाओ।।
कौन कहो जो सदा रहेगा
समय कहो क्या यहाँ रुकेगा
कौन कहो जो यहाँ अमर है
मिला यहाँ जो सब नश्वर है
जीवन छोटा पग-पग आशा
बड़ी, उमर से है प्रत्याशा
दूर दृष्टि वीथी पर डालो
अपना पथ तुम स्वयं सजालो
मन से मन को स्वयं मिलाओ
आशाओं के पुष्प खिलाओ।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11अक्टूबर, 2022
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