जो अगर मैं शब्द होता गीत मैं बनता तुम्हारा।।

जो अगर मैं शब्द होता गीत मैं बनता तुम्हारा।।

उम्र के हर पृष्ठ पर पंक्ति बनकर मैं निखरता
छू के अधरों को तेरे प्रीत बनकर मैं गुजरता
और भरता अंक तेरे छंद की नव पाँखुरी से 
और पलकों पे तुम्हारे स्वप्न लेकर मैं सँवरता।।

और भरता अंक में उम्मीद का नूतन सितारा
जो अगर मैं शब्द होता गीत मैं बनता तुम्हारा।।

मैं चाहता हर रोज मेरे नेह का संचय बढ़े
और संचित कोष में तू प्रीत का आशय पढ़े
वक्त दोहराता हमारी गीत की जब पंक्तियाँ
भाव के आकाश पर बिन कहे सब कुछ कहे।।

बिन कहे भावों को देता जो यहाँ पल-पल सहारा
जो अगर मैं शब्द होता गीत मैं बनता तुम्हारा।।

भाव की आलोडनाएँ हैं मुझे अकसर लुभाते
आपकी संवेदनाएँ पास हैं पल-पल बुलाते
जानता हूँ है कठिन इस पार से उस पार जाना
फिर भी आना चाहता हूँ मुश्किलें सारी भुला के।।

और बस जाता तुम्हारे नभ का बन आकाशतारा
जो अगर मैं शब्द होता गीत मैं बनता तुम्हारा।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        30सितंबर, 2022



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