गीत सजा रखा है।
दिल का दरवाजा मैंने अब तक खुला रखा है।।
अब कहने को तो है रात ये घनेरी माना
पर उम्मीद का एक दीपक जला रखा है।।
मेरी तनहाइयाँ भी कहीं छोड़ न दें मुझको
मैंने रुसवाइयों को गले से लगा रखा है।।
शाम होते ही ये सड़कें भी चली जाती हैं
लगता है कहीं दूर नया गाँव बसा रखा है।।
अब तो चाहत है यही "देव" के लिखता जाऊँ
तूने जो गीत दिये अधरों पे सजा रखा है।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय "देववंशी"
हैदराबाद
16सितंबर, 2022
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