नेह का निमंत्रण।

नेह का निमंत्रण। 

है दिवस अवसान को औ रोशनी मद्धम हुई है
दूर पीछे बादलों के साँझ की शबनम गिरी है
शब्द साँसों में मचलकर कर रहे देखो समर्पण
गीत अधरों पर सजाओ नेह का तुमको निमंत्रण।।

हूँ खड़ा कब से यहाँ मैं देख लो सागर किनारे
शून्य को तकती निगाहें, साँस तुमको ही पुकारे
बस गए हो नैन में तुम बन के मेरा आत्म दर्पण
गीत अधरों पर सजाओ नेह का तुमको निमंत्रण।।

उम्मीद की सब रश्मियाँ सांध्य में ही खो न जायें
स्वप्न जो तुमसे जुड़े हैं शून्य में ही खो न जाये
खो न जाये आस मन के नयन में भर दो किरण धन
गीत अधरों पर सजाओ नेह का तुमको निमंत्रण।।

लौट कर जो आ गया तो स्वयं को न पा सकूँगा
कल्पनाओं के सफर में मैं न फिर से जा सकूँगा
हो रहा उद्विग्न मन ये तुम दिखाओ राह नूतन
गीत अधरों पर सजाओ नेह का तुमको निमंत्रण।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        15सितंबर, 2022

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