गीत गाया जो कल गुनगुनाना वही।

गीत गाया जो कल गुनगुनाना वही।  

तुम जो चाहो अगर फिर बुलाना वहीं
गीत गाया जो कल गुनगुनाना वही
कि राह तेरी क्षितिज तक देखूँगा मैं
जब भी चाहो मुझे आजमाना वहीं।।

मैं चलूँगा तुम्हारे कदम दर कदम
दूर करूँगा मैं सब तुम्हारे भरम
बात दिल में जो तेरे सुनाना वहीं
गीत गाया जो कल गुनगुनाना वही।।

रात की चाँदनी का मैं इक गीत हूँ
तुम ये मानो मुझे मैं वही मीत हूँ
जिस पे तुमने हमेशा भरोसा किया
जो भरोसे से उपजा वही प्रीत हूँ।।

प्रीत की राह की एक नई रीत हूँ
दिल को भाये यहाँ जो वही जीत हूँ
जीत की राहें तुम भूल जाना नहीं
गीत गाया जो कल गुनगुनाना वही।।

शब्दों का हार हूँ एक व्यवहार हूँ
प्रीत के गीत का मैं भी श्रृंगार हूँ
जिस विधाता ने तुमको गढ़ा प्यार से
उसी के हाथ का मैं भी आकार हूँ।।

मौसमों का मधुर मैं भी संगीत हूँ
मन भींगोये यहाँ बूँद की रीत हूँ
कितने सपने बुने भूल जाना नहीं
गीत गाया जो कल गुनगुनाना वही।।

छोटा जीवन बड़ी है कहानी यहाँ
हँस के बीते वही जिंदगानी यहाँ
कुछ कहो प्यार से और सुनो प्यार से
पास सबके हैं कितनी कहानी यहाँ।।

आसमानों से बादल हट जाएंगे
धुंध छाये हैं जो भी छँट जाएंगे
हँस के फिर तुम जरा बुलाना वहीं
गीत गाया जो कल गुनगुनाना वही।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        07अक्टूबर, 2021

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