प्रेम का बंधन।
प्रेम से जो बाँध लो तो मन को भी भाता है बंधन।।
हानि लाभ से मुक्त हृदय तो
फिर पुण्य पावन ये धरा है
भौरों के गुंजन से समझो
उपवन परागों से भरा है।।
शुष्क यदि उपवन यहाँ तो मन को तड़पाता है क्रंदन
प्रेम से जो बाँध लो तो मन को भी भाता है बंधन।।
रात की वो गुमनामियाँ भी
इस रोशनी में गुम हुईं तब
अधरों से बरसे जो मोती
ये ताप भी शीतल हुये तब।।
शब्दों में आक्रोश ना हो मौन भी करता है नरतन
प्रेम से जो बाँध लो तो मन को भी भाता है बंधन।।
है कौन ऐसा जो जगत में
प्रिय प्रेम से कुंठित हुआ हो
जो भी स्वयं से दूर भागा
प्रिय प्रेम से वंचित हुआ वो।।
प्रीत, पावन, पुण्य करता पतझड़ को करता है सावन
प्रेम से जो बाँध लो तो मन को भी भाता है बंधन।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
06सितंबर, 2021
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