सफर।
क्या पता था इस राह में ख्वाब कितने मरते रहे।।
मंजिलों पर पहुँच कर पीछे मुड़ जब देखा सफर में
तब समझा क्या छोड़ आये अहसासों के शहर में।।
किसको सुनाऊँ मैं कहानी बात अब किससे करूँ
पत्थरों के लोग दिखते इन पत्थरों के नगर में।।
बिक रहे हैं ख्वाब कितने औ बिक रही हैं चाहतें
हैं सजी दुकान लाखों नीलामियों के इस भँवर में।।
है अजब मंजर यहाँ का औ है अजब दस्तूर भी
कहने को लोग लाखों डूबे पर अपनी खबर में।।
भीड़ की बेचैनियों में गुम न हो जाये कहीं सब
आ चलें मिल बैठ जायें फिर वहीं अपने शहर में।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18जुलाई, 2021
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