रात का अंतिम पहर।
वक्त से कुछ बोलकर
मोह सारे छोड़कर
चल पड़ी है इक डगर
रात का अंतिम सफर।
शून्यता को ताकती
मौन मन को भाँपती
ताकती है इक नजर
रात का अंतिम पहर।
तड़प सारे तोड़कर
भँवर सारे मोड़कर
शांति तलाशती लहर
रात का अंतिम पहर।
द्वार सारे बंद हैं
शोर भी अब मंद हैं
मंद है चलता शहर
रात का अंतिम सफर।
मुक्तिकामी चेतना
मौन मन की वेदना
ढूंढती है इक डगर
रात का अंतिम सफर।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
13सितंबर,2020
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