सूरज जैसा बन मिलाकर

सूरज जैसा बन मिलाकर।                                 
सूरज जैसा बनना है तो
सूरज जैसा ही चलाकर
सम दृष्टि सब जन पर डाले
सूरज जैसा बन मिलाकर।।

हर कोना उज्ज्वल कर देता
मिटा आलस्य मुस्कान है भरता
दिन समग्र खुद जलता रहता
सांझ ढले फिर घर को जाता।।

कड़ी धूप हो, अग्निकुंड हो
अंजुली भर कर अर्ध्य मिलेगा
स्वयं तपाया जो जीवन अपना
तब जाकर तम दूर हटेगा।।

है कितना कुछ सीखने को उससे
यही चाहता बस वो हमसे
छोड़ दर्प पद ताप तेज का
निश्छल, निष्कपट, निर्विकार मिलाकर।।

सूरज जैसा बनना है तो
सूरज जैसा ही चलाकर।।

अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
02अप्रैल, 2020


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