उम्मीदों का परिप्रेक्ष्य।
कितने पल आते जीवन में
कुछ हर्षित, कुछ करते अस्थिर
प्रतिपल रंग बदलता रहता
जीवन चक्र यूँ चलता रहता।।
आस-निराश क्षणों मेंं चिन्हित
अपनी इच्छाओं का प्रतिबिंबित
पल-पल व्याकुल करता रहता
जीवन चक्र यूँ चलता रहता।।
सपनों का व्योम बड़ा है
कर्तव्यों का बोध बड़ा है
आंख-मिचौली खेलूं कैसे
उम्मीदों का परिप्रेक्ष्य बड़ा है।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
01अप्रैल, 2020
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