तुम्हारे मंदिर में
बन के दीपक में जलूं
तुम्हारे मंदिर में,
तेल हो प्रेम का
इच्छा की बाती मैं बनूं
तुम्हारे मंदिर में।।
भोर की पहली किरण पर
मंदिर का कपाट
जब तुम खोलो
एक मद्धम सी चमक बन सजूं
मैं तुम्हारे मंदिर में।।
क्षणभर भी विमुख न हो
मन तुम्हारे भावों से
तुम बनो सागर
बन के गंगा
अविच्छिन्न मैं मिलूं
तुम्हारे मंदिर में।।
अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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