अब जग गया हूँ
चलते चलते लगता है
कि जैसे मैं थक गया हूँ
दुनियादारी के बोझ तले
शायद दब गया हूँ।
झुलसने लगे हैं
अब कानों के पर्दे भी
सुनकर सारे प्रलाप
अब पक गया हूँ।
सीख यही मिली मुझको
जमाने की ठोकरों से
राह कैसी भी हो मगर
अब सँभल कर चल रहा हूँ।
झुलसाया है इतना
वक्त के थपेड़ों ने
नींद से उठकर के
अब जग गया हूँ।।
अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें