आज की रात मेरे गीतों को जीवन दे दो
होंठों से छू के मेरे गीत अमर हो जायें।
जो भी लिखे भाव तेरी चाहतों के पुष्प बने,
मेरी आँखों में सजे चाहतों के दृश्य बने।
पंक्ति-पंक्ति में तेरे होने का आभास किया,
गीत के शब्द में बस तेरा ही अहसास जिया।
आज की रात मेरे गीतों का चुंबन कर दो,
होंठों से छू के मेरे गीत अमर हो जायें।
देख संध्या को सजाने लगी सावन की घटा,
हर उपवन को भी भाने लगी है तेरी अदा।
देखो मेघों ने मचल गीत कोई गाया है,
मन के आँगन में भी चहुँओर नशा छाया है।
आज की रात मेरे गीतों को सावन दे दो,
भींगे सावन में मेरे गीत अमर हो जायें।
जाती किरणों ने भी संदेश नया भेजा है,
नभ कपोलों पे भी इक छाई नई रेखा है।
लौटते नीड़ के सभी पंछी मुस्कुराते हैं,
देख संध्या की किरण वो गीत नया गाते हैं।
आज की साँझ मेरे गीतों का वंदन कर दो,
सज के अधरों से मेरे गीत अमर हो जायें।
रातरानी भी मेरे गीत को महका जाये,
मन के भावों में नया भाव वो दहका जाये।
हैं अकेले भाव मेरे आज दुकेली कर दे,
मेरे हाथों को सजा अपनी हथेली धर दे।
आज की रात मेरे गीतों को चंदन कर दो,
बन के खुशबू ये मेरे गीत महकते जायें।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18 अगस्त, 2025
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें