कैसे भूल जाऊँ
जख्म जो दिल को मिला है सोचता कैसे जताऊं
यूँ तो हमने लिख दिए हैं हाल ये दिल इन कागजों पे
पर सोचता हूँ हाल दिल का उनको मैं कैसे सुनाऊँ
छोड़ ही देता अगर वो मुड़ के यूँ न देखते
एक उनसे राब्ता है अब छोड़ उनको कैसे जाऊँ
माना अब भी आसना है उनका दिल मेरे लिये
पर जमाने की फिकर दिल से उनके कैसे मिटाऊँ
चाहतों के गीत उनके होंठ पर अब तक सजे हैं
देव अब तुम ही कहो ये बात कैसे भूल जाऊँ
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
17 अगस्त, 2025
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें