जीवन का आशय
बिना बढ़े कब मिल पाया है जीवन में आश्रय बोलो।
लहरों की धारा संग चलकर गहराई का ज्ञान हुआ,
आत्म विभूषित हुआ जहाँ राहों का अनुमान हुआ।
अनुमानों के बिना मिला कब संकल्पों को आशय बोलो,
बिना बढ़े कब मिल पाया है जीवन में आश्रय बोलो।
अरुणोदय का बोध नहीं तो चन्द्र रश्मियाँ व्यर्थ रहीं,
जब तक ताप नहीं मिलता है शीतलता का अर्थ नहीं।
धूप-ताप जो सहा नहीं है छाँवों का आशय बोलो,
बिना बढ़े कब मिल पाया है जीवन में आश्रय बोलो।
उच्च कभी तो निम्न कभी है अपने जीवन की रेखा,
पौरुष का सम्मान किया जो उसने मरु में जल देखा।
अनुदानों में मिलने वाले सपनों का आशय बोलो,
बिना बढ़े कब मिल पाया है जीवन में आश्रय बोलो।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
19 जुलाई, 2024
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