सँभल जाये
तुझको देखे न तो मचल जाये
देख ले तुझको तो सँभल जाये
यूँ तो सँभले हैं गिर-गिर के यहाँ
तू जो देखे तो फिर फिसल जायें
बाँध रक्खा है यहाँ ख्वाहिशें कितनी
तू जो कह दे तो सब निकल जायें
जब से देखा है तुम्हें दूर हुआ है खुद से
तू जो मिल जाये तो ये भी मिल जाये
यूँ तो मुश्किल है बदलना इसको
तुझको पाए तो फिर बदल जाये
क्या पता दूर कहाँ तक अँधेरी गलियाँ
साथ जो चल दे शमा खिल जाये
"देव" बिखरा है कई बार जमाने में
तू जो दे हाथ तो सँभल जाये
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
21नवंबर, 2023