नदिया और समंदर।

नदिया और समंदर।  

चली है आज नदिया फिर समंदर में समाने को
मचलते भाव ले मन में नया फिर गीत गाने को
उसे अब इन हवाओं से नहीं कोई  शिकायत है
चली है आज जीवन से खुद मिलने मिलाने को।।

नहीं नदिया महज व्याकुल समंदर में सिमटने को
नहीं राहें महज व्याकुल निगाहों में सिमटने को
मंजिल की भी है चाहत कि राहें पास तक पहुँचे
समंदर की भी ख्वाहिश कि नदिया आये मिलने को।।

नदिया ये समंदर की नहीं यूँ ही दीवानी है
कि नदियों ने समंदर में बसायी राजधानी है
लिख डाले हैं कवियों ने मिलन के गीत कितने ही
गीतों को जो महकाये नदिया का ही पानी है।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        29जुलाई, 2022

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