जीवन-मृत्यू की बाजी।
पल पल घट घट रीत रहा है
जीवन मृत्यू की बाजी में
समय हमेशा जीत रहा है।।
कंकण पत्थर के जंगल मे
मौन अकेला खड़ा हुआ हूँ
जाने कितने बोझ लिए मैं
बीच राह में पड़ा हुआ हूँ
आते जाते इन राहों में
पल पल जीवन बीत रहा है
जीवन मृत्यू की बाजी में
समय हमेशा जीत रहा है।।
वाणी में इक द्वंद छिड़ा है
कौन उठा है कौन गिरा है
बहती जीवन की धारा में
कभी उठा है कभी गिरा है
गिरते पड़ते इन राहों में
पग पग सपना बीत रहा है
जीवन मृत्यू की बाजी में
समय हमेशा जीत रहा है।।
हिय में पोषित अभिलाषाएँ
अधरों पर गुंजित गाथाएँ
पलकों पर ले स्वप्न सुनहरे
चल रही यहाँ हैं आशाएँ
आशाओं के आसमान में
झर झर सपना रीत रहा है
जीवन मृत्यू की बाजी में
समय हमेशा जीत रहा है।।
है पुण्य समिध जीवन अपना
कर रहा हवन पूरा अपना
पुण्य समर्पित भाव लिए ये
बना हृदय भागीरथ अपना
सहज कहाँ गाथाएँ इतनी
अधरों पर ये गीत रहा है
जीवन मृत्यू की बाजी में
समय हमेशा जीत रहा है।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
24जुलाई, 2021
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