मलहम के अवशेष

मलहम के अवशेष।  

जीवन की अंगनाई में
भाव मिले, अतिरेक मिले
घाव मिले अतिरेक मगर
बस मलहम के अवशेष मिले।

व्यंग्य बाण बस सुनता आया
नश्तर दिल पर चुभता पाया
दर्द चिकोटी का सह सह कर
रोता आया, हंसता आया।

आरोप यहां बहुतेरे आये
क्या अपने और क्या थे पराये
जग के तीखे दंश हैं झेले
पग-पग कितने घाव मिटाये।

कहने को बहुतेरे अपने
साथ मगर जाने क्यूं छूटा
जब-जब उनसे हुआ सामना
तब-तब मन का दर्पण टूटा।

इस दर्पण के टुकड़े में ही
अब खुद को मैं खोज रहा हूँ
हर टुकड़े के अवशेषों में
दंश तेरा ही देख रहा हूँ।

इन अवशेषों के एहसासों में
दर्द मिले अतिरेक मिले
घाव मिले अतिरेक यहां
बस मलहम के अवशेष मिले।।

©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30अप्रैल, 2020


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