भाग 1
धर्मयुद्ध में खड़ा हुआ हूँ, मैं भी पात्र इक खास हूँ,
हूँ भ्रात मैं भी कौरवों का, हाँ, माना पुत्र दास हूँ।
मन झंझा में उलझा-उलझा, समझ नहीं कुछ आता है,
धर्म अधम के महा युद्ध में, मन मेरा घबराता है।
मेरे मन में गूढ़ व्यथा है, किससे मन की बात कहूँ,
समझ नहीं पाता है मन ये, कैसे मैं आघात सहूँ।
दूर करो शंका मेरी सब, प्रभु मुझपर उपकार करो।
एक तरफ है धर्म खड़ा, दूजे अधर्म की टोली है,
मैं जाऊँ किस ओर नाथ, दुविधा मन की भोली है।
दासी से जन्मा हूँ माना, पर भ्रात सभी हैं मेरे,
धर्मराज से भी रिश्ता है, सच से मुख कैसे फेरें।
कुरुक्षेत्र के धर्म युद्ध में, दुविधा मेरी भारी है,
जाने क्यूँ लगता है मेरी, इच्छा मन की हारी है।
लेकिन मैं कुरु ओर रहूँ, ये मुझको है स्वीकार नहीं,
धर्म की खातिर हत हो जाऊँ, इसमें मेरी हार नहीं।
भाग 2
भाई हैं वो सारे मेरे, नैतिकता पर कहीं नहीं,
सुलभ चेतना शून्य सभी में, प्रेम भावना रही नहीं।
उनके हर इक़ कृत्यों पे मैं, धर्मराज शर्मिंदा हूँ,
कैसे कह दूँ नाथ वहाँ मैं, घुट-घुट कर के जिंदा हूँ।
पर केशव मेरे इस मन में, छाई दुविधा भारी है,
जिसके जालों में फँसकर के, साँसें मेरी भारी हैं।
एक तरफ हैं भाई मेरे, दूजी ओर सगे मेरे,
पर एक तरफ है धर्म ध्वजा, दूजी ओर अधम घेरे।
युद्ध करूँ उस ओर यहाँ मैं, मन को ये स्वीकार नहीं,
धर्म नीति पे प्राण त्यागना, इसमें मन की हार नहीं।
मेरे मन की इस दुविधा को, धर्मराज अब दूर करें,
साथ अधम का नहीं चाहिए, मन की इच्छा पूर्ण करें।
निर्णय और अनिर्णय में फँस, जो मन समय गँवाता है,
समय अंक से झर जाता जब, पाछे बस पछताता है।
शेष समय रहने तक जो मन, अपनी भूल सुधारा है,
अंतर्मन के महा द्वंद्व में, कभी नहीं वो हारा है।
भाग 3
मान रहा इतिहास मुझे यूँ, याद नहीं रख पायेगा,
समय शेष रहते निर्णय में, नाम हमारा आयेगा।
नहीं विजय की चाह मुझे है, और नहीं अभिलाषा है,
धर्म ध्वजा से नभ लहराये, मन की इतनी आशा है।
सुनकर बात वीर की रण में, धर्मराज आगे आये,
तब दिया भार उसे रसद का, जहाँ योग्यता दिखलाए।
धर्म क्षेत्र में सभी खड़े हैं, अपना भाग निभाने को,
लेकिन कितने अड़ पाते हैं, पास सत्य के जाने को।
होते वीर नहीं केवल, जो युद्ध जिया बस करते हैं,
वो भी वीर कहाते हैं, जो सच पे जीते मरते हैं।
वर्तमान की देख दुर्दशा, कितने जो शर्माते हैं,
धर्म मार्ग पर चलने वाले, कटु निर्णय ले पाते हैं।
धर्म युद्ध कब खत्म हुआ, अरु होने का अनुमान नहीं,
लेकिन बने युयुत्सु यहाँ, क्या इतना भी आसान नहीं।
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
07जनवरी, 2024
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