एक प्रण।
कैसा पल आया जीवन में
हाहाकार मचा जन जन में
अदृश्य शत्रु के व्यवहारों से
व्याकुलता मची त्रिभुवन में।
आओ हम प्रतिकार करें
अनुदेशों को अंगीकार करें
अदृश्य भयावह इस शत्रु से
राष्ट्र रक्षण का प्रण स्वीकार करें।
मनुजता के रक्षण की खातिर
निःस्वार्थ समर्पित हैं जो इस रक्षण में
जुनुस जश्न के भाव त्याग कर
ताली, थाली से अपने उद्गार करें।
वक्त नहीं ये उत्सव का
वक्त है आत्म नियंत्रण का
त्याग कर विषाद के क्षण
सबको आशावान बनाएं
आओ मिलकर दीप जलाएं।
कहने को ये लॉक डाउन है
पर व्यवहारिक अवस्था है
अनुशासन का प्रारूप सही है
ये कैद नही व्यवस्था है।
ताली, थाली के आग्रह का
व्यर्थ न तुम उपहास करो
ये तो अभियान मात्र है
बस भावों का सम्मान करो।
ऐसे व्यवहारों से माना
परास्त शत्रु नही हो सकता
पर निःस्वार्थ समर्पित कर्मवीरों का
सम्मान सुनिश्चित हो सकता।
इन रणवीरों का हम
सम्मान सुनिश्चित आज करें
दीप जलाएं त्याग रूप का
हम इनका सम्मान करें।
आओ सब सहयोग करें
जन जन को समझाना है
मनुज रक्षण की खातिर
लॉक डाउन को अपनाना है।
अपनी मर्यादा में रहकर ही
उद्देश्य प्राप्त हम कर सकते हैं
इस वैश्विक महामारी से
निस्तार प्राप्त हम कर सकते हैं।।
अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
13अप्रैल, 2020
Ati sunder 👌
जवाब देंहटाएंIt's me Gitesh
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भैया
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