राष्ट्रवाद


चाणक्य के विचारों का राष्ट्रवाद।  

आक्रोश नेत्रों में भरे
वो कर रहा अंतर्नाद था
था द्रवित हृदय आज उसका
पीड़ा का वृहद साम्राज्य था।

आज उसके ज्ञान के
थी परीक्षा की घड़ी
राष्ट्र पर संकट बड़ा था
पर स्वार्थ की थी सबको पड़ी।

यवन खड़े थे द्वार पर
विश्व विजय अभियान पर
चाणक्य को ये भान था
ये राष्ट्र का अपमान था।

ले स्वप्न संयुक्त राष्ट्र का
जन जन  में थे भटक रहा
जनपदों की एकता का
मार्ग प्रशस्त कर रहे।

अखण्ड भारत का स्वप्न लिए
चिंतन करना ही पड़ेगा
जनपदों की निज सीमांत त्यज
एक सूत्र में बंधना ही पड़ेगा।

एक राष्ट्र श्रेष्ठ राष्ट्र की
अवधारणा स्वीकार कर
राष्ट्र रक्षण के निमित्त
निज मोह का तू त्याग कर।

राष्ट्र का सम्मान अब
जन जन हृदय में भरना होगा
राष्ट्र निर्माण का प्रण लिए
सर्वस्व समर्पण करना होगा।

चाणक्य के राष्ट्रभाव को
लेकर हमें चलना ही होगा
नवभारत के निर्माण के लिए
पग पग का कंटक चुनना होगा।

राष्ट्रवाद के भाव को 
डँस रहे अनेकों नाग हैं
भ्रांति भ्रांति का भाव जगाते
कर रहे वो अट्टहास हैं।

बन राष्ट्रवाद के प्रहरी
तू ऐसी हुंकार कर
मद मत्तों का मद उतर जाए
तू ऐसा शंखनाद कर।

राष्ट्रद्रोहियों का कुचक्र तोड़कर
भ्रांतियों का अवसान कर
चिर निद्रा से जग उठें सब
सदियों का उद्धार कर।

जीर्ण शीर्ण व्यवहारों ने
राज धर्म को तोड़ा है
कुसंस्कारी व्यवहारों ने
राष्ट्रमुल्यों को तोड़ा है।

कर दीप्तीवान आज कलम को
वाणी का प्रखर विस्तार कर
कान्हा के पाञ्चजन्य बन कर
नवयुग का शंखनाद कर।

नभ तक गूंजे शंखनाद ये
सुप्त दिशाएं जाग उठें
एकसूत्र में बंधे आज हम
स्वर्णिम भारत भाग्य जगे।।

अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
16 अप्रैल, 2020

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