निर्झर

मेरी पुत्रियों द्वारा निर्मित चित्र

चित्र चिंतन-निर्झर।      
                                                     
झर झर झरता रहता निर्झर
बिना रुके बहता है निर्झर।।

नील गगन की छांव में बहता
मौन शिखर के चरण में बहता
सद्य विहंगम दृश्य यह सुघर
बिना रुके बहता है निर्झर।।

प्रशस्त पथ है मुक्त मुखर
प्राणों का स्वर भावों में भर
रजत सनात सौंदर्य है अमर
बिना रुके बहता है निर्झर।।

नही कोई अवरोध बड़ा है
जीवन की गति है ये निर्झर
इठलाती लहरें मिलती झीलों में
नही देखता पर पीछे मुड़कर।।

चलना है चलते रहना है
जीवन नही ठहरता पलभर
यही सीख बतलाता रहता
बिना रुके बहता है निर्झर।।

अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
27मार्च 2020


4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कविता। इस वैश्विक संकट में मानव को प्रेरित करने का अतुलनीय प्रयास। चित्र भी कविता के भाव को प्रर्दशित कर रहा है।

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    उत्तर
    1. धन्यवाद
      निर्झर से चलायमान रहने की प्रेरणा हम सभी को लेनी है।
      आपके अनमोल टिप्पणी व प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद

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